जंतर मंतर पर जलाई गई मनुस्मृति!

 

नई दिल्ली,आज डॉ. उदित राज, राष्ट्रीय चेयरमैन, दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज और आदिवासी (डोमा) परिसंघ के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में जंतर मंतर, नई दिल्ली पर एकत्रित होकर प्रदर्शन किया गया और सामूहिक रूप से संविधान की प्रस्तावना पढ़ी गई तथा उसके पश्चात ‘मनुस्मृति’ की कॉपी जलाकर संदेश दिया गया कि देश संविधान से चलेगा न कि मनुस्मृति से। आज का दिन ही इसलिए चुना गया कि 25 दिसंबर, 1927 को बाबा साहब डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति जलायी थी। लोगों के हाथों में ‘अमित शाह – इस्तीफा दो’, ‘बाबा साहब के सम्मान में – डोमा परिसंघ मैदान में’, आदि स्लोगन थे,

डॉ. उदित राज, राष्ट्रीय चेयरमैन, दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज और आदिवासी (डोमा) परिसंघ, ने प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा कि गृह मंत्री, अमित शाह द्वारा बाबा साहब, डॉ. बी. आर. अंबेडकर का संसद के पटल पर अपमान देश बर्दाश्त नहीं करेगा। अमित शाह ने आवेश या भावनात्मक बात यह नहीं कही है, बल्कि इसके पीछे वर्षों की घृणा प्रकट हुई है। 12 दिसंबर 1949 में आर.एस.एस. और हिन्दू महासभा ने डॉ. अंबेडकर का पुतला और संविधान की प्रति जलायी थी। इसका जवाब आज हमारे संगठन के महासचिव – कुणाल कुमार ने यहाँ मनुस्मृति का दहन करके दिया है।

उन्होंने आगे कहा कि बीते दिनों संसद में नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, निर्मला सीतारमन आदि ने पहले संवैधानिक संशोधन की निंदा की है। वर्षों की घृणा फिर से उभरी है। यह संवैधानिक संशोधन जमींदारी उन्मूलन और दलितों को आरक्षण देने के लिए किया गया था। अमित शाह द्वारा घृणित बयान इसलिए आया कि पहला संवैधानिक संशोधन दलितों, आदिवासियों और गरीबों के लिए किया गया था। जमींदारी उन्मूलन न होता तो भूमिहीन दलितों, आदिवासियों और गरीबों को जमीन नहीं मिल पाती, यही इनकी घृणा का मुख्य कारण है।

उन्होंने आगे कहा कि राहुल गांधी जी लगातार जाति जनगणना की बात उठा रहे हैं और भाजपा तरह-तरह के अड़ंगे लगाकर जनगणना नहीं कराना चाहती। जब तक जाति जनगणना नहीं होती तब तक पिछड़ों का उद्धार हो ही नहीं सकता। जाति जनगणना न हो उसके लिए कभी मुस्लिम आरक्षण का विवाद पैदा कर देते हैं तो कभी संभल में हिन्दू-मुस्लिम दंगा। पी.एम. मोदी सीधे जाति जनगणना का विरोध कर नहीं सकते इलसिए तमाम बहाने करते रहते हैं। 400 पार का नारा अगर साकार हो गया होता तो अब तक ये शायद संविधान को बदल चुके होते। एक राष्ट्र – एक चुनाव संविधान को कमजोर करने का षड्यन्त्र ही है। नेहरू गांधी जी से इसलिए घृणा करते हैं कि उन्होंने बाबा साहब डॉ. अंबेडकर को संविधान निर्मात्री समिति का अध्यक्ष बनने का मौका दिया। यहीं पर नहीं रुके बल्कि उनको देश का कानून मंत्री बनाया। इन्हें तिरंगा झण्डा से भी घृणा थी और सत्ता प्राप्ति के लिए गिरगिट की तरह रंग तो बदल लेते हैं लेकिन कभी दिल की बात जुबां पर आ ही जाती है। सावरकर इनके पूजनीय इसलिए हैं कि वे संविधान के स्थान पर मानुस्मृति लागू करना चाहते थे।

प्रदर्शन में डोमा परिसंघ के राष्ट्रीय महासचिव, रवि महिंद्रा एवं कुणाल कुमार, ओबीसी नेता – सुरेन्द्र कुशवाहा, ए. आर. कोली, राम कुमार कुशवाहा, योगेंद्र चंदेलिया, जुल्फिकार जी, डॉ. सफ़ी हसन, हरीदास पांडे, दयानंद, गीतांजलि बरुआ, संजय राज, आयेशा, आर. के. त्रेहन, राहुल मीणा, लाल सिंह, सुरेश महला, ओम प्रकाश आदि साथियों के साथ भाग लिए।

 

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