जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने विकसित भारत @2047: वॉइस ऑफ यूथ के तत्वावधान में भारतीय ज्ञान प्रणाली पर कार्यशाला आयोजित की
नई दिल्ली:जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक समावेश अध्ययन केंद्र (सीएसएसआई) ने विकसित भारत @2047 की दूरदर्शी पहल के अंतर्गत सोमवार, 20 जनवरी, 2025 को “भारतीय ज्ञान प्रणाली” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इस कार्यक्रम में भारत की समृद्ध बौद्धिक विरासत के महत्व और एक स्थायी तथा समावेशी भविष्य को आकार देने में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया। केंद्र के लिए यूजीसी के अधिदेश को ध्यान में रखते हुए कार्यशाला का आयोजन इसके विजन एवं मिशन के अनुसार किया गया था। इस महत्वपूर्ण शैक्षणिक कार्यक्रम को सुविधाजनक बनाने में जामिया के माननीय कुलपति प्रो. मजहर आसिफ और कुलसचिव प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिजवी के समर्थन और विजन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
डॉ. मुजीबुर रहमान ने औपचारिक रूप से पैनलिस्टों का दर्शकों से परिचय कराया और केंद्र की निदेशक डॉ. तनुजा ने प्रतिभागियों और पैनलिस्टों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने अपने सम्बोधन में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में उल्लिखित भारतीय ज्ञान प्रणाली पर प्राचीन और आधुनिक दृष्टिकोणों के बीच की खाई को पाटने के लिए भारतीय ज्ञान के विभिन्न विषयों के व्यापक अध्ययन पर बल दिया। 21वीं सदी की समकालीन चुनौतियों और चिंताओं को संबोधित करते हुए डॉ. तनुजा ने इस क्षेत्र में प्रामाणिक शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए ऐसी पहलों की क्षमता को रेखांकित किया।
कार्यशाला में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रो मोहम्मद मुस्लिम खान मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम में तीन प्रतिष्ठित वक्ताओं ने भी भाग लिया जिन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए
पहली वक्ता प्रो अनीता रामपाल ने इस बात पर बल दिया कि हमारे देश में अपार विविधता के कारण भारतीय ज्ञान प्रणाली को एक ही ढांचे तक सीमित नहीं रखा जा सकता। उन्होंने देश के विभिन्न क्षेत्रों से ज्ञान को शामिल करने और उसका जश्न मनाने के महत्व पर प्रकाश डाला, जबकि अवैज्ञानिक सोच को बनाए रखने वाले छद्म विज्ञान एवं विश्वास प्रणालियों की आलोचनात्मक व्याख्या की।
प्रो. चारु गुप्ता ने हिंदू पहचान और उसके ऐतिहासिक विकास की बुनियादी समझ के बारे में चर्चा की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हिंदू होने का विचार समय के साथ विविध प्रथाओं और व्याख्याओं द्वारा आकार लेता रहा है। अपनी नवीनतम पुस्तक, हिंदी, हिंदू और इतिहास से प्रेरणा लेते हुए, प्रो गुप्ता ने विवाह जैसे सामाजिक निर्माणों की फ्लुइडिटी अर्थात तरलता पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से ऐसे उदाहरण जहां इसने जाति की सीमाओं को पार किया है कठोर सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी है ।
प्रो. अनिकेत सुले ने अंत में स्वदेशी ज्ञान को संजोने के महत्व पर प्रकाश डाला और साथ ही बिना सबूत के अतीत का महिमामंडन करने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में समाज में व्यापक गलत धारणाओं को भी संबोधित किया एवं इस समझ में बदलाव की आवश्यकता पर रोशनी डाली उन्होंने यूनानियों, अरबों और चीनियों के साथ सूचनाओं के व्यापक आदान-प्रदान के माध्यम से ज्ञान के विकास को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष निकाला।
सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन, मुख्य अतिथि ने इस विषय पर इस अग्रणी कार्यशाला के आयोजन में सामाजिक समावेश अध्ययन केंद्र द्वारा की गई पहल की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) कोई नई खोज नहीं है, अपितु यह हमारे शास्त्रों में गहराई से निहित है। उन्होंने इसे प्रगतिशील और समावेशी भविष्य के लिए प्रासंगिक बनाने के लिए शोध और चर्चा की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने औद्योगीकरण और मशीनीकरण के माध्यम से ज्ञान को आम जनता के लिए उपयोगी बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कार्यशाला का समापन किया।
कार्यशाला का समापन एक जीवंत संवादात्मक सत्र के साथ हुआ जिसमें प्रतिभागियों ने विचारोत्तेजक चर्चाओं में भाग लिया, जिसमें पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक शैक्षिक अभ्यास के साथ एकीकृत करने के महत्व को रेखांकित किया गया और प्रो मोहम्मद मुस्लिम खान ने विचारोत्तेजक टिप्पणियां कीं, जिन्होंने मुख्य बातों और चर्चाओं के महत्व पर बल दिया।
कार्यक्रम की सफलता में योगदान देने वाले पैनलिस्टों, प्रतिभागियों और आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए डॉ. अरविंद कुमार ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया। इस पहल ने न केवल भारत की बौद्धिक विरासत का जश्न मनाया अपितु समावेशी और विकसित राष्ट्र के लक्ष्य के साथ विकसित भारत @2047 के व्यापक लक्ष्यों के साथ भी तालमेल बिठाया।