Jamia:जामिया ने स्वर्गीय डॉ. जाकिर हुसैन की 128वीं जयंती मनाई

JMI celebrates 128th Birth Anniversary of Late Dr. Zakir Husain

जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने स्वर्गीय डॉ. जाकिर हुसैन की 128वीं जयंती मनाई

जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने भारत रत्न से सम्मानित, भारत के तीसरे राष्ट्रपति और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पूर्व कुलाधिपति स्वर्गीय डॉ. जाकिर हुसैन की 128वीं जयंती मनाई। इस अवसर पर विश्वविद्यालय परिसर में स्थित उनकी समाधि पर विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। प्रार्थना सभा में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति प्रो. मजहर आसिफ, कुलसचिव प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिजवी, विश्वविद्यालय के अधिकारी, छात्र और डॉ. जाकिर हुसैन के परिवार के सदस्य शामिल हुए।

8 फरवरी, 1897 को जन्मे जाकिर हुसैन ने इटावा स्कूल से पढ़ाई की और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए किया। वे प्रोफेसर वर्नर सोम्बर्ट की देखरेख में बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी करने के लिए सितंबर 1922 से फरवरी 1926 तक जर्मनी में रहे, जिसे 1926 में “सर्वोच्च सम्मान” से मंजूरी दी गई।

जर्मनी में अपने सहयोगियों डॉ. आबिद हुसैन और मोहम्मद मुजीब के साथ जाकिर हुसैन 1926 में जामिया आए। वे 22 वर्षों (1926-48) तक जामिया के कुलपति रहे। यह उनकी दूरदृष्टि ही थी जिसने वित्तीय और वैचारिक संकट के विकट समय में जामिया को एकजुट रखा और उन्होंने जामिया के आजीवन सदस्यों को बनाने में नेतृत्व किया, जिन्होंने जामिया को 20 साल की सेवा देने का संकल्प लिया। डॉ. जाकिर हुसैन के करियर की पहचान शिक्षा के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्धता और राष्ट्र निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका से थी।

उन्होंने 1948 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में सहायता करने के लिए जामिया छोड़ दिया। वे बिहार के राज्यपाल, भारत के उपराष्ट्रपति और भारत के राष्ट्रपति बने। डॉ. जाकिर हुसैन का निधन 3 मई, 1969 को हो गया । वे पद पर रहते हुए मरने वाले पहले भारतीय राष्ट्रपति थे। उनके राष्ट्रपतित्व काल को उनकी विद्वता, लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता और शिक्षा की शक्ति में गहरी आस्था के लिए जाना जाता है।

डॉ. जाकिर हुसैन न केवल एक प्रख्यात भारतीय राजनीतिज्ञ थे अपितु वह एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी भी थे जिनका प्रभाव राजनीतिक सीमाओं से परे था। शिक्षा के क्षेत्र में उनके गहन योगदान एवं अधिक समतावादी और शिक्षित भारत के लिए उनका दृष्टिकोण आज भी प्रेरणादायी है।

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