
वक्फ (संशोधन) अधिनियम का उद्देश्य: औकाफ की जायदाद का अधिग्रहण नहीं, बल्कि संरक्षण और प्रबंधन में सुधार है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहाँ विभिन्न धर्मों, समुदायों और संस्कृतियों को अपने-अपने धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों को संचालित करने की स्वतंत्रता है। इस्लाम धर्म में वक्फ़ एक ऐसा धार्मिक और सामाजिक संस्थान है जिसके अंतर्गत कोई मुसलमान अपनी संपत्ति को अल्लाह की राह में दान कर देता है ताकि उसका उपयोग समाज की भलाई के लिए किया जा सके। यह संपत्तियाँ आमतौर पर मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों, गरीबों की सहायता और अन्य धार्मिक व सामाजिक प्रयोजनों के लिए होती हैं।
वक्फ़ संपत्तियों का संचालन और संरक्षण एक बड़ी ज़िम्मेदारी है, जिसे “वक्फ बोर्ड” के माध्यम से निभाया जाता है। लेकिन समय-समय पर यह देखा गया है कि इन संपत्तियों की देखरेख में अनेक कमियाँ, भ्रष्टाचार, कब्जा और ग़लत प्रबंधन के मामले सामने आए हैं। इन्हीं कारणों से केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम में संशोधन कर वक्फ संशोधन अधिनियम (Waqf Amendment Act) को लागू किया ताकि इन संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
भारत में वक्फ संपत्तियों को संचालित करने के लिए 1954 में पहला केंद्रीय अधिनियम बनाया गया था, जिसे बाद में में वक्फ अधिनियम, 1995 के रूप में नया स्वरूप दिया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत राज्य स्तर पर वक्फ बोर्डों की स्थापना की गई। फिर 2013 में वक्फ संशोधन अधिनियम लाया गया, जिसका उद्देश्य था वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा को और अधिक मज़बूत बनाना था लेकिन सुधार के बजाए लूट जारी रही। उदाहरण के तौर पर तेलंगाना वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा। यह भारत के सबसे समृद्ध वक्फ बोर्डों में से एक माना जाता है, जिसके पास लगभग 77,000 एकड़ से अधिक वक्फ संपत्ति दर्ज है, जिसमें कई प्रमुख मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें और अन्य धार्मिक स्थल शामिल हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, तेलंगाना में लगभग 60% से अधिक वक्फ संपत्ति पर अवैध कब्जे हैं , जिनमें निजी लोग, बिल्डर्स और यहाँ तक कि सरकारी संस्थान भी शामिल हैं और कई संपत्तियाँ ऐसे हैं जिनका अभी तक ठीक से सर्वेक्षण नहीं हुआ है, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि वह वक्फ की हैं या नहीं।
कर्नाटक में भी वक्फ संपत्ति बहुतायत में है। कर्नाटक वक्फ बोर्ड के पास करीब 54,000 से अधिक संपत्तियों का रिकॉर्ड है। इनमें कई संपत्तियाँ उच्च वाणिज्यिक मूल्य की भी हैं, जैसे बेंगलुरु जैसे महानगरों में स्थित जमीनें।
2012 की CAG रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ था कि कर्नाटक की लगभग ₹2 लाख करोड़ की वक्फ संपत्ति पर कब्जा या घोटाले हुए हैं और अनेक संपत्तियाँ वर्षों से न्यायालयों में लंबित पड़ी हैं, जिनका कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। इसके अलावा ये भी खुलासा हुआ था कि वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी, और कई बार अधिकारियों की उदासीनता के चलते संपत्तियों का उचित उपयोग नहीं हो पाता है।
तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों की वक्फ संपत्तियों की स्थिति इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि वक्फ अधिनियम में संशोधन क्यों आवश्यक है। लाखों करोड़ की इन धार्मिक संपत्तियों पर या तो अवैध कब्ज़े हैं या इनका उपयोग नहीं हो पा रहा। सरकार द्वारा पारदर्शिता, डिजिटलीकरण और कानूनी सुरक्षा की दिशा में उठाए गए कदम, जैसे वक्फ संशोधन अधिनियम, इस दिशा में एक बड़ा प्रयास हैं। यदि इनका सही तरह से कार्यान्वयन किया जाए तो वक्फ जायदादें न केवल संरक्षित रहेंगी, बल्कि समुदाय की तरक्की का साधन भी बनेंगी।
संशोधन अधिनियम के मुख्य बिंदु:
वक्फ संपत्ति पर कब्जे को अपराध घोषित करना: अब कोई भी व्यक्ति अगर वक्फ संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा करता है तो यह एक दंडनीय अपराध माना जाएगा।
संपत्तियों की डिजिटलीकरण और रिकॉर्डिंग: सभी वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड डिजिटल रूप में तैयार किया जाएगा जिससे पारदर्शिता और नियंत्रण बना रहे।
ऑडिट और पारदर्शिता: वक्फ बोर्डों के खातों की समय-समय पर जांच की व्यवस्था की गई ताकि भ्रष्टाचार और ग़लत प्रबंधन पर लगाम लगाई जा सके।
संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग: कई संपत्तियाँ ऐसी होती हैं जो उपयोग में नहीं आ रहीं। संशोधन के माध्यम से ऐसी संपत्तियों का सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है, जैसे – स्कूल, अस्पताल, या छोटे उद्यम।
सामुदायिक भागीदारी और सहभागिता:अधिनियम में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि मुस्लिम समुदाय वक्फ बोर्ड के गठन और संचालन में भागीदारी करे, जिससे सामुदायिक स्वायत्तता बनी रहे। यह सहभागी शासन की मिसाल है।
आज यह भ्रांति फैलायी जा रही है कि वक्फ अधिनियमों में संशोधन का मक़सद औक़ाफ़ की संपत्तियों को हड़पना है। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार की मंशा इस दिशा में बिल्कुल उलट है। वक्फ (संशोधन) अधिनियम का उद्देश्य न तो औकाफ की संपत्तियों का अधिग्रहण है और न ही धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप। बल्कि यह अधिनियम एक ऐसा विधायी उपकरण है, जो वक्फ संपत्तियों की रक्षा, पारदर्शिता, और समुचित उपयोग को सुनिश्चित करता है। भारत जैसे बहुधार्मिक लोकतंत्र में यह अधिनियम अल्पसंख्यक समुदाय की आस्था और संपत्ति की सुरक्षा हेतु एक संतुलित और आवश्यक कदम है।
सही कार्यान्वयन के लिए आवश्यक है कि सरकार, वक्फ बोर्ड और समुदाय मिलकर कार्य करें ताकि वक्फ संपत्तियाँ केवल काग़ज़ों तक सीमित न रहें, बल्कि अपने उद्देश्य जनहित और परोपकार की पूर्ति कर सकें।
लेखक – मोहम्मद शहाब (लेखक के स्वतंत्र विचारक एवं चिंतक है)